Thursday, February 9, 2012

खतरे में खजुराहो


कम से कम हजार साल से खजुराहो की पहचान उसके मंदिरों से है। वह पहचान खतरे में है, क्योंकि मध्य प्रदेश शासन जिस कोशिश में लगा है अगर वह सफल हो गया तो सबसे पहले खजुराहो के मंदिर नष्ट होने लगेंगे। मंदिर हैं तो खजुराहो है। मंदिरों के वगैर खजुराहो की कल्पना ही बड़ी भयावह होगी। प्रकृति ने खजुराहो को धरती से थोड़ा ऊपर बनाया है। शायद इसीलिए कि उसपर जो मंदिर खड़े होंगे वे अपनी आध्यात्मिक आभा बिखेरेंगे। उन्हीं मंदिरों के कारण खजुराहो का स्थान विश्व धरोहर में बना हुआ है।

वैसे तो मध्य प्रदेश में तीन स्थान हैं जिन्हें विश्व धरोहर में माना जाता है। दूसरे जो दो हैं उनमें एक सांची के स्तूप हैं। दूसरा भीम बैठका है, लेकिन खजुराहो में दुनिया से जितने लोग आते हैं उतने शायद दूसरे स्थानों पर नहीं जाते। खजुराहों के मंदिरों में दुनिया का आकर्षण उसकी कला के कारण है। पर्यटक अपनी इन रूचियों के कारण वहां पहुंचता है। उन पर्यटकों की सुविधा के लिए वहां हवाई पट्टी है और होटलों की शृंखला है। इस चकाचौंध से दूर खजुराहो का आध्यात्मिक महत्व अक्षुण बना हुआ है। इसलिए भी कि वहां चौसठ योगिनियों का वह मंदिर है जहां हर योगी एक बार पहुंचना ही चाहता है।

इसे पुराण में खोजने जाने की जरूरत नहीं है। इस समय के नामी योगी स्वामी राम की जीवनी के पन्ने-दर-पन्ने खजुराहो के उस मंदिर की अलौकिक गाथा के गवाह है। स्वामी राम के एक उत्तराधिकारी राजमणि तिगुनेत हैं। वे अमेरिका के हिमालय इंस्टीट्यूट को संभालते हैं। उन्होंने स्वामी राम की जीवनी लिखी है। स्वामी राम की कई जीवनियों में से सबसे अधिक प्रामाणिक उनकी लिखी ही मानी जाती है। वह है - ‘एैट दी इलेवन्थ ऑवर’। इस तरह खजुराहो जितना ही आधुनिक है उतना ही उसमें भारत की परंपरा का प्रवाह है। उसे संवारने के लिए हर साल खजुराहो महोत्सव होता है। जो इन दिनों चल रहा है।
जरा सोचिए, मध्य प्रदेश शासन इन बातों से बेपरवाह होकर वहां दो-दो थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट ले आने की तैयारी कर रहा है। किसानों से जमीन ली जा रही है। किसान उसका विरोध कर रहे हैं। उन्हें जानने का हक है जिसकी प्रशासन परवाह नहीं कर रहा है और उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि वे अपनी जमीन शासन को सौंप दें। अगर थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट आ गया तो खजुराहो का नष्ट होना कुछ सालों की बात ही होगी।

ऐसी बात नहीं है कि इस खतरे से मध्य प्रदेश शासन अवगत न हो। खजुराहो के एक सजग नागरिक नमित वर्मा ने गांठ बांध ली है कि लड़ेंगे और अपनी धरोहर बचाएंगे। वे दिल्ली के लुटियन और भोपाल के श्यामला हिल्स से थोड़ा ऊंचे उठकर अपनी चिट्ठियों से आगाह कर रहे हैं। उसका असर भी हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उनकी चिंता को उचित ठहराया है। सबसे पहले पिछले साल मई में उन्होंने एक लंबा पत्र लिखा। जो हर उस खास व्यक्ति को भेजा गया जिसका थोड़ा-सा भी हाथ अनुचित काम को रोकने में लग सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस लंबी सूची में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित मध्य प्रदेश शासन के सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।

भारत सरकार के वन और पर्यावरण मंत्रालय के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उनके पत्र पर माना कि खजुराहो से थोड़ी दूर पर ही एनटीपीसी का जो सुपर थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट प्रस्तावित है वह स्थापित मानकों पर आधारित नहीं है। उसके लिए पर्यावरण संबंधी जिस तरह का अध्ययन किया जाना चाहिए वह नहीं हुआ है। अगर थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट लगता है तो एक तरफ खजुराहो की विश्व धरोहर के नष्ट होने का जहां खतरा पैदा हो जाएगा वहीं पन्ना के टाइगर संरक्षण वाले वनों पर भी संकट मंडराएगा। उसी पत्र में यह सूचना भी है कि मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी है, लेकिन यह माना है कि प्रोजेक्ट को लाने से पहले इस तरह के ऐहतियाती उपाय जरूरी हैं जिससे खजुराहो और पन्ना के जंगलों में संरक्षित टाइगर को कोई नुकसान न हो।

यह भी अजीब-सी बात है कि जिस पॉवर प्रोजेक्ट को वहां लाने के प्रयास हो रहे हैं उसके लिए कोयला बहुत दूर से लाया जाएगा। यह एक ऐसा तथ्य है जो संदेह पैदा करता है कि दिखाया जो जा रहा है उससे अधिक बड़ी बात छिपाई जा रही है। इस बारे में नमित वर्मा ने अपनी दूसरी चिट्ठियों में कुछ सवाल उठाएं हैं। जिनका संबंध खनन के लिए लाइसेंस जारी करने से है। आरोप है कि थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट कांग्रेस के एक नेता की सीमेंट फैक्टरी के लिए लाया जा रह है। यह जांच का विषय है कि उसमें मध्य प्रदेश भाजपा के किन नेताओं की हिस्सेदारी है। क्या मध्य प्रदेश सरकार वहां खनन माफिया की गिरफ्त में आ गई है और उससे ध्यान हटाने के लिए पॉवर प्रोजेक्ट की आड़ ले रही है। इस बात के संकेत नहीं है कि राज्य सरकार अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहती है। राज्य सरकार के इरादे पर ही पूरे क्षेत्र में सवाल खड़ा हो गया है। आखिर वह इरादा क्या है। सरकार की चुप्पी संदेह को बढ़ा रही है। संभव है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विकास यात्रा के दौरान उस क्षेत्र में उन्हें लोगों को जवाब देना पड़े।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय हैं)

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