Thursday, October 20, 2011

वे आजाद थे और आजाद रहे


“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥” वह चिनमय मिशन ऑडिटोरियम था, जहां कबीर की ये वाणी गूंज रही थी। लोग बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद की शोक सभा में एकत्र हुए थे। तारीख आठ अक्टूबर थी। इस मौके पर लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने उन दिनों को याद किया जब उनकी पहली बार आजाद से मुलाकात हुई थी। उन्होंने कहा कि आजाद जी ने ताउम्र मुल्यों की राजनीति की। वहां कई और महत्वपूर्ण लोग थे। गृहमंत्री पी.चिदंबरम और दूसरे कई कांग्रेसी नेता भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आए। भागलपुर से लोकसभा सांसद शाहनवाज हुसैन भी थे। दरअसल, यही वह संसदीय क्षेत्र है जहां से आजाद ने राजनीति शुरू की थी। चुनकर संसद पहुंचे। पर 1989 में जब भागलपुर की जनता ने उन्हें नकार दिया तो आजाद ने सक्रिय राजनीति से ही संन्यास ले लिया। भारतीय राजनीति में ऐसे उदाहरण कम हैं।

बहरहाल, आजाद का निधन 4 अक्टूबर को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हो गया था। वे पिछले कुछ समय से बीमार थे और एम्स में भर्ती थे। वे पहली बार 1957 में भागलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनकर सांसद पहुंचे थे। हालांकि, 1977 में कांग्रेस के खिलाफ हवा चली तो वे हार गए। पर भागलपुर की जनता ने 1980 में उन्हें पुन: अपना प्रतिनिधि चुना। वे फरवरी 1988 से लेकर जनवरी 1989 तक लगभग ग्यारह महीने बिहार के मुख्यमंत्री पद पर भी रहे। हालांकि, उनकी राजनीतिक सक्रियता अपने प्रदेश से अधिक केन्द्रीय स्तर पर देखी जाती थी। उनकी पहचान एक ओजस्वी वक्ता के साथ-साथ किसी के भी मुंह पर खरी-खरी सुना देने की थी। इसके कई किस्से भागलपुर में मशहूर हैं।

इन सब बातों के बावजूद 1989 के भागलपुर दंगे ने वहां की जनता और आजाद के बीच एक लकीन खींच दी। इससे आजाद काफी आहत हुए। उन्होंने राजनीति से ही संन्यास ले लिया। हालांकि, भागलपुर की जनता अंत तक उनकी राह देखती रही। उनका स्थान और दर्जा किसी दूसरे को नहीं दिया। पर वे नहीं आए। वे आजाद थे और आजाद रहे।

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