Friday, October 7, 2011

2जी घोटाले पर डॉ.सुब्रह्मण्यम स्वामी से बातचीत

फिलहाल देश में भ्रष्टाचार को रोकने के लिख सैद्धांतिक बहस चल रही है। आंदोलन हो रहे हैं। इस माहौल में डॉ.सुब्रह्मण्यम स्वामी मौजूदा कानून से ही भ्रष्टाचारियों को कैसे सजा दिलवाई जा सकती है, इसका उदाहरण पेश कर रहे हैं। एक बातचीत में उन्होंने कुछ प्रसंगों को बताया और समझाया है। आप भी पढ़ें-



सवाल- नियंत्रण और महालेखा परीक्षक (सीएजी) और लोक लेखा समिति (पीएसी) की रिपोर्ट से भी पहले 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को आपने उठाया। इसकी शुरुआत कैसे हुई?
जवाब- बात 10 जनवरी, 2008 की है। उस दिन रात 9.30 बजे भारत सरकार के दो अधिकारी मुझसे मिलने मेरे घर आए। हालांकि, उन दोनों को मैं पहले से जानता था, सो हमने उनसे मुलाकात की। उन्होंने बताया कि वे बड़े दुखी और परेशान हैं। इसके बाद पूरी जानकारी दी। कहा कि “आज दोपहर 2.45 बजे एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें कहा गया कि शाम 3.30 से 4.30 बजे के बीच जो डिमांड ड्राफ्ट लाएगा उसे 2जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस दिया जाएगा। इसके बाद वहां अफरा-तफरी मच गई, जबकि चंद चुने हुए लोगों को पहले से ही इसकी खबर थी। वे डिमांड ड्राफ्ट लेकर मंत्री के कमरे में तैयार बैठे थे। ऐसा मेरे जीवन में पहली बार हुआ है और हमलोग शर्म महसूस कर रहे हैं।” उनकी बातों को सुनने के बाद मेरी समझ में आया कि क्या कुछ हुआ होगा।
मैं जानता हूं कि भ्रष्टाचार का बहुआयामी असर होता है। इसलिए हमनें सही जानकारी इकट्ठा की। इससे मालूम हुआ कि 2001 में स्पेक्ट्रम का जो मूल्य तय हुआ था, वह 2008 में लगभग दस गुणा ज्यादा हो सकता है। ऐसी स्थिति में साफ था कि राजस्व को बढ़ा नुकसान हुआ है और इसमें बड़ी रिश्वतखोरी हुई है। तब मैंने 2जी मामले को उठाने का मन बनाया। एक और बात भी है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जब मैं पढ़ा रहा था तो वहां कई लोग बार-बार पूछ रहे थे कि भारत में यह सब क्या हो रहा है, क्या वहां कोई आवाज उठाने वाला भी नहीं है? आखिर भारत को क्या हो गया है? यह सब सुनने के बाद इस घोटाले को उजागर करने की मेरी इच्छाशक्ति प्रबल हो गई। मैंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी। स्पेक्ट्रम आवंटन में जो घोटाला हुआ, उनसब का हवाला देते हुए ए.राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी। यह बात नवंबर, 2009 की है।

सवाल- अब जबकि सीएजी और पीएसी ने भी आपके आरोपों की पुष्टि कर दी है और कोर्ट भी कुछ मामलों की निगरानी कर रहा है तो इस समय आपने एक अलग मोर्चा गृह मंत्री पी.चिदंबरम के खिलाफ खोल दिया है। हालांकि, इसका जिक्र पीएसी की रिपोर्ट में भी संकेतों में है। पहले इस पर कोई विश्वास नहीं कर रहा था कि पी.चिदंबरम का भी इस घोटाले में हाथ हो सकता है, पर नए तथ्य इसकी पुष्टि कर रहे हैं। आपने जिन दस्तावेजों को आधार बनाया है, वे क्या हैं और उससे कौन-कौन सी बातें निकलती हैं?
जवाब- हालांकि, पीएसी की रिपोर्ट जून, 2011 के अंत में आई थी, लेकिन मैंने इससे पहले ही 13 मई को कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा था कि पी.चिदंबरम के खिलाफ जांच हो। पीएसी रिपोर्ट से जो भी दस्तावेजी तथ्य बाहर आए, वे मेरे पास पहले से मौजूद थे। उसी के आधार पर मैं आगे बढ़ा। इसके बाद जब पीएसी के रिपोर्ट में भी पी.चिदंबरम का नाम आया तो इससे मुझे बड़ा बल मिला। डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने जो रिपोर्ट लिखी है उसमें यह स्पष्ट है “वित्त मंत्री का दायित्व बनता है कि वे देश की तिजोरी की रक्षा करें, पर ऐसा लग रहा है कि वित्त मंत्री ने लापरवाही की है। अत: इसपर जरूर विचार होना चाहिए।” मेरे लिए यह भी एक आधार बना। हालांकि, बीच के दो महीने मैं विदेश में रहा, लेकिन वापस लौटने के बाद उसी कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा हूं।

सवाल- इसमें अबतक अदालत में आपको कितनी सफलता मिली है?
सवाल- अभी बहस चल रही है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के वकील ने केवल तकनीकी पक्ष रखा है। हालांकि मेरी तरफ से पेश किए गए हालिया साक्ष्य का उन्होंने खंडन नहीं किया है। इतना भर कहा है कि अब उन्हें चार्जसीट फाइल करनी है। इसलिए डॉ.स्वामी को इस कोर्ट में यह अधिकार नहीं है कि वे सीबीआई जांच की मांग करें।
मेरी समझ से उनका तर्क कमजोर है। वह इसलिए क्योंकि गुजरात के मामले में 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, उसमें कहा गया है कि चार्जशीट दाखिल करने के बाद भी सीबीआई जांच की मांग कर सकते हैं। ऐसे में उनका तर्क अधिक समय तक टिक नहीं सकता है। हालांकि, दूसरी तरफ पी.चिदंबरम के वकील भी कह रहे हैं कि लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने इसका भी कड़ा जवाब दिया है। इससे साफ है कि उनके पास कोई तर्क नहीं है। वे अबतक मेरे किसी भी सवालों का जवाब देने में सफल नहीं हुए हैं। केवल यही कह रहे हैं कि यह कोर्ट सीबीआई जांच के आदेश नहीं दे सकती है।

सवाल- सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) से जो नए तथ्य सामने आए हैं, क्या उन तथ्यों को आपने कोर्ट में पहले ही पेश कर दिया है ?

जवाब- मुझे नहीं मालूम कि कोई व्यक्ति आरटीआई से इन बातों की जानकारी प्राप्त करने में जुटा है। उक्त व्यक्ति ने अखबारों को जानकारी दी होगी, पर ऐसा लगता है कि किसी अखबार वालों ने इन दस्तावेजों का सही तरीके से उपयोग नहीं किया। आखिर ऐसा क्यों हुआ, यह भी सोचने वाली बात है। मेरे पास जो दस्तावेज आए उनका आरटीआई से कोई सरोकार नहीं है।

सवाल- अखबारों में आया है कि आरबीआई के गवर्नर और उस समय के वित्त सचिव डी सुब्बाराव जो ए.राजा और पी.चिदंबरम के साथ बैठक में मौजूद थे, सीबीआई उनसे भी पूछताछ करेगी। इससे आपको अदालत में कितना बल मिला?
जवाब- अखबारों में तो कई बातें नहीं आई हैं। पी.चिदंबरम के वकील ने जाने-अनजाने कोर्ट में कहा कि डॉ.स्वामी ने जो तथ्य दिए हैं, उसकी अवश्य सीबीआई छानबीन करेगी और वस्तु-स्थिति से अवगत कराने वाली एक अतिरिक्त रिपोर्ट पेश करेगी। अब उनकी बातें मेरी समझ में नहीं आती हैं, क्योंकि मेरी भी तो यही मांग है। लेकिन वे यह भी कह रहे हैं कि यह कोर्ट सीबीआई को फिर से जांच के आदेश नहीं दे सकती है।
मेरी समझ से उन लोगों को कोई रास्त नहीं दिख रहा है। हमने इतने तथ्य पेश किए हैं कि किसी के लिए भी यह कहना मुश्किल होगा कि आप ए.राजा को तो जेल भेज सकते हैं, पर पी.चिदंबरम के खिलाफ सीबीआई जांच नहीं हो सकती।

सवाल- तो क्या आप कह रहे हैं कि पी.चिदंबरम के खिलाफ सीबीआई चार्जशीट दाखिल करेगी और उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा?
जवाब- पहले तो उनके खिलाफ एफआईआए दर्ज होगा। फिर जांच शुरू होगी। तब सवाल उठेगा कि ऐसी स्थिति में वे मंत्री पद पर कैसे बने रह सकते हैं। इसके बाद उन्हें इस्तीफा देना होगा। मैं समझता हूं कि उन्हें जांच के आदेश मात्र से ही इस्तीफा देना होगा।

सवाल- ए.राजा से इस्तीफा लेकर उन्हें जेल में डालकर सरकार और उनकी जांच एजेंसी सीबीआई ने जो जांच की दिशा तय की, उसे पी.चिदंबरम का नाम आने के बाद बदलने को तैयार नहीं है। क्या आपको लगता है कि कोर्ट के आदेश से उसे बदलना होगा?
सवाल- आज सीबीआई एक प्रतिद्वंदी के रूप में सामने आ रही है। क्योंकि मैंने कहा है कि इस मामले में उसने ठीक से काम नहीं किया है और जान-बूझकर पी.चिदंबरम को बचाने की कोशिश की है। अब वह अपने बचाव के लिए सफाई देने में लगी है। कह रही है कि उसने ऐसी कोई गलती नहीं की है, क्योंकि इसमें कोई खास तथ्य ही नहीं है। इसके बावजूद यदि कोर्ट आदेश देती है तो सीबीआई को उसे मानना होगा। मैं समझता हूं कि आज की परिस्थिति में सीबीआई यह दिखाना चाहेगी कि आपने विरोध किया, पर कोर्ट ने हमें आदेश दिया।

मैंने कोर्ट में उस साक्ष्य को पेश किया है जिसमें ए.राजा ने कहा है कि वह स्वान और यूनीटेक को स्पेक्ट्रम नहीं बेचना चाहते थे। पी.चिदंबरम के दबाव में उन्होंने ऐसा करना पड़ा।
-डॉ.स्वामी

सवाल- पी.चिदंबरम का बचाव सोनिया गांधी समेत पूरी कांग्रेस पार्टी कर रही है। प्रधानमंत्री भी उनके पक्ष में खड़े हैं। तब न्यायपालिका की क्या भूमिका होगी?
जवाब- सरकार और उसके कामकाज के बारे में जो लोग अच्छी तरह जानते हैं वे यह समझते हैं कि प्रधानमंत्री ने पी.चिदंबरम का पक्ष नहीं लिया है। उन्होंने यह नहीं कहा है कि चिदंबरम निर्दोष हैं। हां, यह कहा है कि मेरा उनपर विश्वास है। अगर वे यह कह दें कि चिदंबरम दोषी हैं तो मामला कल ही खत्म हो जाएगा।

सवाल- राजनीतिक पार्टियां खासकर भारतीय जनता पार्टी ने पी.चिदंबरम के साथ प्रधानमंत्री को भी घेरना शुरू कर दिया है। वहीं आपका कहना है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। क्या यह आपकी रणनीति का हिस्सा है?
जवाब- दोनों है। दरअसल, प्रधानमंत्री को बार-बार घसीटने की जो बात होती है, सोनिया गांधी भी यही चाहती हैं। क्योंकि, वह अपने पुत्र राहुल गांधी को अब प्रधानमंत्री पद पर बैठाना चाहती हैं। मुझे इस बात की जानकारी है कि सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री के बीच टेलीफोन पर एक बातचीत हुई है। उस बातचीत में सोनिया गांधी ने साफ-साफ शब्दों में प्रधानमंत्री से कहा है कि वे दिसंबर में पद से इस्तीफा देकर राहुल गांधी का नाम प्रस्तावित करें। हालांकि, प्रधानमंत्री ने इसका कोई ठोस जवाब नहीं दिया। उन्होंने सोनिया गांधी की बातें जरूर सुनीं। दरअसल, आज इस इटालियन परिवार में एक घबराहट है। वे लोग चाहते हैं कि मनमोहन सिंह की जगह अब राहुल को पद पर आ जाना चाहिए और यदि ऐसा नहीं हुआ तो चीजें हाथ से बाहर चली जाएंगी। उन्हें यह संदेह भी है कि डॉ. मनमोहन सिंह मन से उनके साथ नहीं हैं। यहां तक बात आ गई कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने ही जान-बूझकर सारी सूचनाएं लिक की हैं, जबकि इसे गुप्त रखा जाना चाहिए था।
एक और बात है कि आखिर प्रधानमंत्री का इसमें दोष क्या है? क्या यह कि वे भीष्म पितामह की तरह सब कुछ देखते रहे। इसमें दो राय नहीं कि वे दोषी हैं। यह सरकार चली जाए और उसके साथ मनमोहन सिंह भी जाएं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। या फिर उनकी बारी सबसे आखिर में आए। मैं सिर्फ इतना कहुंगा कि उनकी बारी जब आएगी तो कोई आपराधिक मामला नहीं बनेगा। वह नागरिक अपराध (सिविल क्राइम) का मामला होगा। इसका मतलब यह कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को ठीक तरीके से नहीं निभाया।

No comments: