Monday, June 14, 2010

‘राजनीति’ में राजनीति


फिल्म राजनीति चार जून को परदे पर आई तो इससे जुड़े विवाद एकबारगी थम गए। फिल्म देखकर लौटे सिने प्रेमियों के मुताबिक राजनीति में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का अक्स दिखलाई नहीं पड़ता। हालांकि, कांग्रेसी कार्यकर्ता कुछ ऐसा ही दावा कर रहे थे। वे शोर मचाते हुए उच्च अदालत तक पहुंच गए। वहां कहा कि फिल्म में कटरीना कैफ का किरदार सोनिया गांधी पर केंद्रित है। इससे उनके अध्यक्ष की छवि धूमिल होती है। इस विवाद से फिल्म की खूब चर्चा हुई। फिल्म को सफल बनाने में इस विवाद का खासा योगदान रहा। वैसे फिल्म के परदे पर आने से पहले निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा इस बात का खंडन कर चुके थे।

खैर, झा वैसे फिल्मकार हैं जो अपनी कृति से सार्थक बहस पैदा करते रहे हैं। पर, उनकी हालिया फिल्म ‘राजनीति’ विवादों में रही। इसने किसी नई बहस को पैदा नहीं किया। कहा जाता है कि झा की इस फिल्म पर कांग्रेसी शुरू से ही निगाह गड़ाए बैठे थे। फिल्म सेंसर बोर्ड के पास गई तो इससे पहले ही कांग्रेस पार्टी की तीन सदस्यों वाली एक समिति ने इसे देखा। कुछ दृश्यों को हटाने व संवादों के साथ बीप के इस्तेमान की बात कही थी। इसके बाद मजबूरन कुछेक फेर-बदल प्रकाश झा को करने पड़े।

दरअसल, सत्ता का भान कराने का कांग्रेसियों में पुराना रिवाज है। यहां उन्होंने यही किया। पर, सिनेमा के शिल्प को नहीं समझ पाए और सही जगह पहुंचने से रह गए। काट-छांट के बावजूद झा उनसे आगे ही रहे। पृथ्वीप्रताप (अर्जुन रामपाल) की विधवा के रूप में इंदु (कटरीना कैफ) का जनता के बीच जाकर भावनात्मक भाषण देना सतर्क निगाह को पुरानी याद दिलाता है। जानकारों का मानना है, “यही तो राजनीति है, आप आपना काम कर जाएं। दूसरों को देर बाद मामूल पड़े। न पड़े तो और भी अच्छा।”

बहरहाल, भारतीय राजनीति में दलीय मतभेदों व टकराव की शिनाख्त करने वाली कम फिल्में हैं जिन्हें लंबे समय तक याद रखा जा सके। ऐसी फिल्में तो और भी कम हैं जो परिवार के भीतर पॉलिटीकल पॉवर हासिल करने के मकसद में जुटे लोगों की पहचान कराती है। यह नहीं कहा जा सकता कि झा की ‘राजनीति’ ने इस कमी को पूरा कर दिया है। पर इसे देखते हुए मालूम पड़ता है कि यह फिल्म वर्तमान भारतीय राजनीति के विषय में और अधिक समझ पैदा करने के लिए बनाई गई है। पर, यहां कई ऐसे गड़बड़झाले हैं जो दर्शकों को उलझाते है। आगे चलकर फिल्म हिंसक ज्यादा हो जाती है। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पृथ्वी प्रताप के घर में विस्फोट इसका प्रमाण है।

गत दो दशकों से राजनीतिक घटनाएं तेजी से घटी हैं। इसने बौद्धिक लेखन को प्रेरित किया। कई सामग्रियां प्रकाश में आई हैं। पर सिनेमा मौन ही रहा। हालांकि अपवाद हैं। 21वीं शताब्दी में स्थितियां कुछ ऐसी बदलीं कि पहले की अपेक्षा भारतीय राजनीति में युवकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई। वे शीर्ष पद की दौर में शामिल हो गए हैं। झा इसे विभिन्न कोणों से परदे पर उतारते हैं। यह जोखिम था। पर झा ने उसे उठाया है।

आंधी और हु-तू-तू जैसी राजनीतिक फिल्म बना चुके गुलजार एक जगह कहते हैं- “अपने पोलिटिकल पीरियड पर कमेंट करना आसान नहीं होता है। पर मैंने यह रिस्क उठाया है। आंधी को लेकर मुझे काफी दिक्कतें उठानी पड़ीं। हालांकि, आज राजनीतिक हस्तक्षेप पहले से कम हुए हैं। पर, आज राजनीतिक गिरोहों द्वारा हस्तक्षेप हो रहा है।” झा की फिल्म प्रदर्शित होने से पहले जो विवाद गहराया, उससे गुलजार सौ फीसद सही साबित होते हैं। आखिरकार प्रकाश झा भी तो फिल्म ‘राजनीति’ के माध्यम से अपने पोलिटिकल पीरियड पर कमेंट कर रहे हैं। लेकिन, फिल्म को कमर्शियली सफल करने के लिए जिस तामझाम की जरूरत होती है ‘राजनीति’ में वे सारी चीजें हैं। इसमें सच कई जगहों पर छुप सा गया है। शायद झा भी यही चाहते थे, क्योंकि उन्हें अंदेशा था कि सीधी बात होगी तो बवेला मचाएंगे। वैसे राजनीति भी साफ और सीधी कहां रह गई है!

भारत में क्षेत्रों की राजनीति पेचीदा है, पर उसका महत्व और भी बढ़ा है। इसे परदे पर अच्छी तरह उतारना सरल नहीं था। पर फिल्म को देखते समय ऐसा लगता है कि निर्देशक तामझाम के बीच कुछ वाजिब सवालों को उठाने और उसे गति देने में सफल रहा है। फिल्म का एक दलित नेता कहता है- “जीवन कुमार हमारी जात के भले हों, बीच के कैसे हो गए।” यह चुनाव के दौरान ऊपर से थोपे गए उम्मीदवार के खिलाफ बगावत है। हालांकि, शीर्ष नेतृत्व ने एक चाल चली, उक्त दलित नेता के पिता को ही उम्मीदवार घोषित करवा देता है। राजनीति के ये दाव-पेंच फिल्म को कहीं-कहीं रोचक बनाए रखते हैं। पर शुरुआती घंटे के बाद ही कसाव बिखर जाता है। निर्देशक उस बिंदु की तलाश में घटनाक्रम को अंजाम देता चलता है, जहां पॉवरफुल शख्स का अक्स डाला जा सके। दरअसल यह फिल्म कम राजनीति ज्यादा है। प्रकाश झा यहां गिरोहबाजों को चकमा देने में सफल रहे हैं।


ब्रजेश कुमार
o9350975445

2 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut sundar nirdeshan kiya, prakash jha, ne

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

माधव( Madhav) said...

good analysis