Tuesday, July 14, 2009

क्या रौब था उस शख्स का !

मौलाना सैयद अब्दुल्लाह बुखारी के इंतकाल से जामा मस्जिद की राजनीति का वह दौर खत्म हो गया जो इमरजंसी से शुरू हुआ था। उस दौर में जामा मस्जिद मुस्लिम समुदाय की राजनीति का केंद्र बनकर उभरा था। जानकार के मुताबिक इसके कई प्रत्यक्ष और परोक्ष कारण थे। इमरजंसी से दो साल पहले मौलाना बुखारी शाही इमाम बने थे। वैसे इमाम तो वे पहले से ही थे। उन्होंने करीब 55 साल तक इमामत संभाली।

जब वे शाही इमाम बने उसके कुछ ही दिनों बाद दिल्ली के किशनगंज इलाके में भयानक दंगा भड़का। लोग बताते हैं कि वह तकलीफ का वक्त था। जिसमें मुसलमानों को शाही इमाम ने मदद पहुंचाई। इससे जहां उनकी शोहरत फैली, जिससे वे सत्ता पक्ष की आंख की किरकिरी बन गए। वही समय था, जब संजय गांधी कांग्रेस में मायने रखने लगे थे। उनके इशारे से सत्ता के गलियारे में पत्ते खड़कते थे।


इमरजंसी लगने पर मौलाना बुखारी ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाई। इससे वे सत्ता के मुकाबिल चुनौती बनकर उभरे। उन्हें जेल जाना पड़ा। लेकिन सरकार लंबे समय तक उन्हें जेल में नहीं रख पाई। लोगों का दबाव पड़ा। टकराव भयानक हो सकता था, इसलिए तानाशाही के माथे पर सोच की लकीरें उभरी। उनका विवेक जगा। मौलाना बुखारी को रिहा करना ही मुनासिब समझा गया। वे चार दिवारी से बाहर आए। उनमें आत्मविश्वास पैदा हुआ। वे दूसरे स्वाधीनता संग्राम के नायक माने जाने लगे।

राजनीति की बारीक समझ रखने वाले बताते हैं कि उन्होंने सन् 77 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका अदा की। वे मंच पर बड़े नेताओं की शोभा बन गए थे। इसमें हेमवती नंदन बहुगुणा की शह भी थी। जनता पार्टी से मोह भंग होने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा की कांग्रेस वापसी के समय मौलाना बुखारी की अहमियत देखने लायक थी। उनके दरबाजे पर कांग्रेस के बड़े नेता दस्तक देते थे। मौलाना बुखारी ने उस वक्त छह सूत्री मांग रखी, जिसे इंदिरा गांधी ने मंजूर किया। वह कांग्रेस के एलान का हिस्सा बना। उस समय मौलाना बुखारी मुस्लिम समुदाय के अकेले रहनुमा माने जाते थे।

राजस्थान के सांभार जिले में जन्मे बुखारी ने लंबी उम्र पाई। वे जिस तारीख को जामा मस्जिद के बारहवें शाही इमाम बने उसी तारीख में आखिरी सांस ली। उन्हें जामा मस्जिद अहाते में सुपुर्दे खाक किया गया। उनके बड़े बेटे मौलाना सैयद अहमद बुखारी शाही इमामत संभाल रहे हैं। पर जो रुतबा मौलान बुखारी का था, अब वह नहीं है। इस तख्त की पैठ हल्की हुई है।

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