Monday, May 4, 2009

15वीं लोकसभा चुनाव में जगी बनारस की आत्मा


बनारस का न्यारापन जितना उसके नाम में है, उससे अधिक उसकी विभूति में है। जिसका जैसा नजरिया हो वह वैसा माने। यह आजादी यही शहर देता है। याद में यह काशी है। सरकारी कागजों में वाराणसी है। चुनाव आयोग ने इसे वाराणसी संसदीय क्षेत्र नाम दिया है और न. 77.
पंद्रहवीं लोकसभा के लिए डा. मुरली मनोहर जोशी ने काशी को चुना। इस पर खूब बमचख मचा, भाजपा में और बाहर भी।

पहले चरण के चुनाव के दौरान इसके संकेत साफ मिल रहे थे कि डा. जोशी यहां से चुनाव जीत रहे हैं। हालांकि, इसकी घोषणा सोलह मई को होनी है। यहां जो दिखा वह काशी की भावना थी। जो जीतती नजर आई। दागी और दोषी यहां क्यों पिछड़ते नजर आए? वे तो बाहुबली भी हैं। बहुत दिनों तक इसे बनारस गहरे डूबकर खोजेगा कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?

यहां लोगों ने जनता की राजनीति और धंधे की राजनीति का फर्क समझा और समझाया। साथ ही धंधे की राजनीति के खतरे को ठीक-ठीक आंका। बनारस अपनी परंपरा में जीता है। उससे रस ग्रहण करता है। लोकतांत्रिक राजनीति में जो खतरे उभर आए हैं उन्हें बनारस ने अपने अनुभवों से पहचाना कि वे उसी तरह के हैं जैसे कभी महामारी हुआ करती थी। उसका नाम चेचक, हैजा, प्लेग कुछ भी हो सकता है। नई महामारी आतंकवाद है।

जिस तरह पहले बनारस वाले गली के नुक्कड़, तिराहे और चौराहे पर टोटका कर महामारी रोकते थे और उसके लिए अनुष्ठान करते थे वही तरीका इस बार चुनावी समर में बनारस ने अपनाया। यह चुनाव बनारस की अपनी इज्जत से जुड़ गया था। इसलिए सामाजिक सहिष्णुता की धारा के मौजूदा प्रतिनिधि सक्रिय हुए। इससे बनारस के बदले मिजाज को समझा जा सकता है।

यही वह खुला रहस्य है जो मतदान के दिन उजागर हुआ। मतदान के नतीजे की जब विधिवत घोषणा होगी तो साफ हो जाएगा कि देश की सांस्कृतिक राजधानी में लोकतांत्रिक आकांक्षा को राह दिखाने का सामर्थ्य है।

यथाकाल पेज का संक्षिप्त अंश

2 comments:

विनीत कुमार said...

संस्कृति चेतना के भीतर से ही राजनीतिक चेतना पैदा होती है, देखें,बनारसकी जनता कुछ ऐसा ही करती है क्या.

Udan Tashtari said...

बस ऐसे ही कुछ परिणाम तो आशा को जिन्दा रखे हैं.