Wednesday, October 1, 2008

मिर्जा गालिब और सिनेमाई गीत

मिर्जा गालिब से जुड़ा एक अखबारी लेख याद आता है- अली सरदार जाफरी एक गोष्ठी में बोल रहे थे कि जिंदगी के हर वाक़ये पर गालिब याद आते हैं। कुछ समय पहले एक मित्र का पैर टूटा तो मिर्जा का यह शेर याद आया-
हुए हैं पांव ही पहले नबुर्दे इश्क में जख्मी,
न भागा जाए है मुझसे न ठहरा जाए है मुझसे।

तभी दिल्ली आया तो कुर्रतुलएन हैदर से मिलना हुआ और पता चला कि उनका हाथ चोट लगने से कुछ दिनों तक प्लास्टर से बंधा रहा। सुनते ही पुनः मिर्जा याद आ गए-
बेकारि-ए-जहां को है सर पीटने का शग्ल,
जब हाथ टूट जाए तो फिर क्या करे कोई।


यह किस्सा लुत्फ उठाने के लिए नहीं, बल्कि सोचने के लिए है। वह यह कि यदि मिर्जा के यहां सभी मौके और बातों के लिए शेर मौजूद है तो क्या हिन्दी सिनेमाई गीतों के साथ ऐसा है।

यह सब दिमाग में चल रहा था और मेरे मित्र रसोई घर में लजीज व्यंजन की तैयारी में जुटे हुए थे। हालांकि, वहां बैठी उनकी अज़ीज़ सखा चाहती थीं कि वह साथ ही बैठें। वहां तत्काल मुझे एक गीत याद आया-
मसाला बांच लूं, प्याज काट लूं,
छुरी किधर गई, है नल खुला हुआ...।
मैं कह रहा हूं क्या, तू सुन रही है क्या...।
कहो न जोर से...। सुनो न गौर से...।
(फिल्म- करीब)।
हालांकि थोड़ा उल्टा मामला है। नायक महोदय रसोई में हैं, पर सीधा भी जल्द ही ढूंढ़ लिया जाएगा।

संख्या के लिहाज से इस दुनिया में इश्किया गीत हद तक हैं और यकीनन इन गीतों का आना जारी भी रहेगा। इसके बावजूद कई चीजों को देख-सुनकर गीत याद आते हैं। एक समाचार चैनल पर खबर आई कि शुक्रवार रात मोटरसाइकिल से जा रहे दो युवकों ने एक व्यक्ति की जमकर पिटाई कर दी। पुलिस हरकत में आई और दोनों को पकड़ ले गई। सुबह-सबेरे दोनों महानुभाव रिहा कर दिए गए। ऐसे में गुलजार याद आते हैं-
आबो-हवा देश की बहुत साफ है।
कायदा है कानून है, इंसाफ है.
अल्लाह-मियां जाने कोई जिए या मरे
आदमी को खून-वून सब माफ है।
(फिल्म-मेरे आपने)

यहां जनकवि से गीतकार बने शैलेंद्र के भी एक गीत दिमाग में चक्कर लगाने लगता हैं-
बूढ़े दरोगा ने चश्मे से देखा
आगे से देखा, पीछे से देखा
ऊपर से देखा, नीचे से देखा
बोले ये क्या कर बैठे घोटाला
ये तो है थाने दार का साला
(फिल्म- श्री 420)

यह न समझा जाए की यहां मिर्जा और फिल्मी गीतकारों के बीच किसी किस्म की समानता ढूंढ़ने की कोशिश हो रही है। हां, यह जानने की कोशिश जरूर है कि जिस तरह हर वाक़ये पर मिर्जा याद आते हैं तो क्या उस तरह फिल्मी गीत याद आ सकते हैं !

ब्रजेश झा
09350975445

2 comments:

Zirah said...

too good.

Unknown said...

It is really nice to read that you have found out similar old and new sher/songs suitable for almost every occasion.
Well Done.
Waiting for some more.