Tuesday, July 3, 2007

मुगलकालीन बाजार पर दीक्षितकालीन छौंक--


यह है मुगलकालीन बाजार पर दीक्षितकालीन छौंक--
लालकिले से दो-तीन फर्लांग दूर एक मुगलकालीन इलाका है। नाम है-चांदनी चौक।
पुरानी दिल्ली का यह तंग इलाका चंद पेचिदां गलियों से घिरा एक बड़ा बाजार है, जिससे हम
हिन्दुस्तानियों के रिश्ते बड़े रूहानी हैं। यूं तो सन् 1646 में जब मुगल बादशाह शाहजहां अपनी
राजधानी आगरा से दिल्ली ले आया तो चांदनी चौक का बसना हुआ। उस वक्त से यह लगातार
आबाद होता गया। और इसकी ख्याती विदेशों तक फैल गई। उस वक्त एक ख्याती प्राप्त बाजार जैसा
हो सकता था, संभवत: यह वैसा ही था। पूरा इलाका अपेक्षाकृत धनी और प्रभावशाली व्यापारियों
का ठिकाना था। कई प्रसिद्ध दुकानें थीं, जिसका वजूद आज भी है। उस वक्त आबादी दो लाख से
भी कम थी। आज नजारे बदल गए हैं। शहर फैल चुका है। आबादी पचास गुना से भी ज्यादा है।
बहुत मुमकिन है कि अब आप यहां बिना कंधे से कंधा टकराए एकाधा गज की दूरी भी तय कर
सकें। भूलभूलैया वाली कई छोटी-बड़ी गलियां जो दिक्कत पैदा करेंगी, सो अलग।
खैर! इसके बावजूद देश की जनता से चांदनी चौक के जो पुराने ताल्लुकात कायम हुए थे वो अब
भी बने हुए हैं। क्योंकि, इसका रंग खुद में ख़ालिस भी है और खुशनुमा भी। इस बाजार में लगने वाली
भीड़ के बारे में मत पूछिए ! यहां गाड़ी के बजाय पैदल दूरी तय करना आसान काम है। मौका-बेमौका
होने को बेताब नोंक–झोंक यहां की रोजमर्रा में शामिल है। शायद इसलिए, बल्लीमारान में रहते हुए
मिर्जा गालिब ने कभी कहा था कि,
‘‘रोकलो, गर गलत चले कोई,
बख़्श दो, गर खता करे कोई’’
आज बल्लीमारा की ये गलियां बड़ी मशहूर हैं। नए उग आए बाजारों के मुकाबले चांदनी चौक बाजार अपनी दयानतदारी पर बड़ी तारीफ बटोरता है। क्योंकि, नई आधुनिकता से लबरेज माहौल में भी यह बाजार हमारी सारी जरूरतों को पूरा करते हुए खांटी देशीपन का आभास कराता है। पश्चिम के तौर-तरीकों की नकल यहां मायने नहीं रखती है। वैसे भी यहां के देशी ठाठ वाले जायकेदार व्यंजनों के क्या कहने हैं ! शायद इस वास्ते लोग अपने अनमनेपन के बावजूद यहां आते हैं।
यह कहना उचित नहीं होगा कि यहां कोई बदलाव हुआ ही नहीं। समय और जरूरत के हिसाब से यह बाजार अपनी शक्ल बदलता रहा है। पुरानी चीजें नए रूप में आती गई हैं। लेकिन, पूरी आबादी को साथ लेकर। जीवन से जुड़े रोजगार को दाव पर रखकर शाहजहांनाबाद के हुक्मरानों ने यहां कोई बदलाव नहीं किए थे। पर, आज हालात बदल रहे हैं। अब तो देश की गणतांत्रिक सरकार भी ऐसे फैसले करने लगी है, जिससे लाखों लोगों का वजूद ही खतरे में पड़ जाता है। इस बाजार के आस-पास रिक्शा, ठेला चलाने वाले मजदूर फिलहाल ऐसी ही कठिनाई से जूझ रहे है, किसी हो जाने वाले अंतिम फैसले के इंतजार में।

ब्रजेश झा

3 comments:

हिमांशु शेखर said...

chandani chowk ke halat par chinta ka jama pehna kar Sheela Sarkar ke faisle ke samajik aur aetehasik pehlu se parichay karata aapka lekh kisi ke bhi dil ko chhu lene wala hai. par punjiwad ke is daur me jahan jan par dhan hawi hai, bhawanaon aur samvednaon se aam logon ka hi sarokar raha hai, satadhishon ke liye ye baten nirarthak hain. unhe to sirf aur sirf punjiwad ki malai chahiye.

हिमांशु शेखर said...

chandani chowk ke halat par chinta ka jama pehna kar Sheela Sarkar ke faisle ke samajik aur aetehasik pehlu se parichay karata aapka lekh kisi ke bhi dil ko chhu lene wala hai. par punjiwad ke is daur me jahan jan par dhan hawi hai, bhawanaon aur samvednaon se aam logon ka hi sarokar raha hai, satadhishon ke liye ye baten nirarthak hain. unhe to sirf aur sirf punjiwad ki malai chahiye

rohit said...

अब तो देश की गणतांत्रिक सरकार भी ऐसे फैसले करने लगी है, जिससे लाखों लोगों का वजूद ही खतरे में पड़ जाता है। इस एक वाक्य ने मानों पूरे चांदनी चौक के इतिहासिक और वर्तमान परिदृय के जीवंत वर्णन के सुख से हमें वंचित कर दिया। और वो समय भी दूर नहीं जब हम मुगलकाल के चांदनी चौक कि तरह वर्तमान चांदनी चौक को किताबों के पन्नों और आप जैसे लेखको के लेखनी में तलाशेगें।